Saturday, 17 February 2018

पति -पत्नी के बीच ये 5 बातें होना बहुत जरूरी :- नवरत्न मंडुसिया

नवरत्न मंडुसिया !! पति-पत्नी के रिश्ते में कभी प्यार तो कभी लड़ाई झगड़ा होना स्वभाविक सी बात है।आमतौर पर हर बीवी अपने पति से यही बात बार-बार दोहराती हैं कि आपके पास मेरे लिए वक्त नही है। लाइफ इतनी बिजी हो गई है कि आप परिवार के साथ ज़िन्दगी का मज़ा ही नही ले पा रहे
 लेकिन कई बार यह दूरियां इतनी बढ़ जाती है कि रिश्ता टूटने की कगार पर आ जाता है।अगर आप भी कुछ ऐसे ही स्थिति से गुजर रहे हैं तो इन बातों की ओर ध्यान देंः-
 1.गलतियों को करें नज़र अंदाज
 आपका अपने पार्टनर पर कुछ ज्यादा ही उम्मीदें करना भी गलत होता है। इस बात को हमेशा याद रखें कि दुनिया में कोई भी परफेक्ट नहीं होता।उनकी छोटी-छोटी गलतियों को नजरअंदाज करें ताकि झगड़े की नौबत ही न आएं।
 2.जल्दबाजी में न करें फैसले 
 आपके और पार्टनर के बीच में अगर किसी बात को लेकर सहमति नहीं बनती तो इसका मतलब यह नहीं कि जल्द ही कोई फैसला ले लिया जाए। इसका सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप दोनों साथ में समय बिताएं और बैठकर समस्या का समाधान निकालें।
 3. कॉम्प्रोमाइज 
 पति-पत्नी के बीच अक्सर ऐसा होता है कि एक-दूसरें की बात को स्वीकार नहीं करते लेकिन अगर आपको लगता है कि आप हमेशा  सही होते हैं तो सबसे पहले आपको खुद को बदलने की जरूरत है। कॉम्प्रोमाइज करना बुरी बात नहीं है। 
 4. मत रखें ईगो कई बार मेल ईगो की वजह से भी रिश्तों में खटास आ जाती है। अगर पति में बहुत ज्यादा ईगो है तो पत्नी को चाहिए कि वह थोड़ा शांत रहे और परिस्थितियों को नियंत्रित करने की कोशिश करे। 5. एक साथ वक्त बिताएं अगर आप चाहते हैं कि आपका रिश्ता कामयाब रहे तो ये बहुत जरूरी है कि आप दोनों साथ में वक्त बिताएं। इस तरह कई समस्याएं अपने आप ही सुलझ जाती हैं। तथा सामान्य जिंदगी के बाद यानी शादी की लाइफ के बारे में नवरत्न मंडुसिया लेके आ रहे है ओरिजनल मैरिज लाइफ स्टोरी

Friday, 9 February 2018

वीर तेजाजी महाराज का जीवन परिचय

नवरत्न मंडुसिया की ओर से जय तेजाजी री
तेजाजी राजस्थानमध्यप्रदेश और गुजरात प्रान्तों में लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं। किसान वर्ग अपनी खेती की खुशहाली के लिये तेजाजी को पूजता है। तेजाजी के वंशज मध्यभारत के खिलचीपुर से आकर मारवाड़ में बसे थे। नागवंश के धवलराव अर्थात धौलाराव के नाम पर धौल्या गौत्र शुरू हुआ। तेजाजी के बुजुर्ग उदयराज ने खड़नाल पर कब्जा कर अपनी राजधानी बनाया। खड़नाल परगने में 24 गांव थे।
तेजाजी ने ग्यारवीं शदी में गायों की डाकुओं से रक्षा करने में अपने प्राण दांव पर लगा दिये थे। वे खड़नाल गाँव के निवासी थे। भादो शुक्ला दशमी को तेजाजी का पूजन होता है। तेजाजी का भारत के जाटों में महत्वपूर्ण स्थान है। तेजाजी सत्यवादी और दिये हुये वचन पर अटल थे। उन्होंने अपने आत्म - बलिदान तथा सदाचारी जीवन से अमरत्व प्राप्त किया था। उन्होंने अपने धार्मिक विचारों से जनसाधारण को सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया और जनसेवा के कारण निष्ठा अर्जित की। जात - पांत की बुराइयों पर रोक लगाई। शुद्रों को मंदिरों में प्रवेश दिलाया। पुरोहितों के आडंबरों का विरोध किया। तेजाजी के मंदिरों में निम्न वर्गों के लोग पुजारी का काम करते हैं। समाज सुधार का इतना पुराना कोई और उदाहरण नहीं है। उन्होंने जनसाधारण के हृदय में सनातन धर्म के प्रति लुप्त विश्वास को पुन: जागृत किया। इस प्रकार तेजाजी ने अपने सद्कार्यों एवं प्रवचनों से जन - साधारण में नवचेतना जागृत की, लोगों की जात - पांत में आस्था कम हो गई। कर्म,शक्ति,भक्ति व् वैराग्य का एक साथ समायोजन दुनियां में सिर्फ वीर तेजाजी के जीवन में ही देखने को मिलता हैं।
लोक देवता तेजाजी का जन्म तेजाजी का जन्म एक जाट घराने में हुआ जो धोलिया वंशी थे। नागौर जिले में खड़नाल गाँव में ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 में हुआ था। उनके पिता गाँव के मुखिया थे। यह कथा है कि तेजाजी का विवाह बचपन में ही पनेर गाँव में रायमल्जी की पुत्री पेमल के साथ हो गया था किन्तु शादी के कुछ ही समय बाद उनके पिता और पेमल के मामा में कहासुनी हो गयी और तलवार चल गई जिसमें पेमल के मामा की मौत हो गई। इस कारण उनके विवाह की बात को उन्हें बताया नहीं गया था। एक बार तेजाजी को उनकी भाभी ने तानों के रूप में यह बात उनसे कह दी तब तानो से त्रस्त होकर अपनी पत्नी पेमल को लेने के लिए घोड़ी 'लीलण' पर सवार होकर अपनी ससुराल पनेर गए। रास्ते में तेजाजी को एक साँप आग में जलता हुआ मिला तो उन्होंने उस साँप को बचा लिया किन्तु वह साँप जोड़े के बिछुड़ जाने कारण अत्यधिक क्रोधित हुआ और उन्हें डसने लगा तब उन्होंने साँप को लौटते समय डस लेने का वचन दिया और ससुराल की ओर आगे बढ़े। वहाँ किसी अज्ञानता के कारण ससुराल पक्ष से उनकी अवज्ञा हो गई। नाराज तेजाजी वहाँ से वापस लौटने लगे तब पेमल से उनकी प्रथम भेंट उसकी सहेली लाछा गूजरी के यहाँ हुई। उसी रात लाछा गूजरी की गाएं मेर के मीणा चुरा ले गए। लाछा की प्रार्थना पर वचनबद्ध हो कर तेजाजी ने मीणा लुटेरों से संघर्ष कर गाएं छुड़ाई। इस गौरक्षा युद्ध में तेजाजी अत्यधिक घायल हो गए। वापस आने पर वचन की पालना में साँप के बिल पर आए तथा पूरे शरीर पर घाव होने के कारण जीभ पर साँप से कटवाया। किशनगढ़ के पास सुरसरा में सर्पदंश से उनकी मृत्यु भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160, तदनुसार 28 अगस्त 1103 हो गई तथा पेमल ने भी उनके साथ जान दे दी। उस साँप ने उनकी वचनबद्धता से प्रसन्न हो कर उन्हें वरदान दिया। इसी वरदान के कारण तेजाजी भी साँपों के देवता के रूप में पूज्य हुए। गाँव गाँव में तेजाजी के देवरे या थान में उनकी तलवारधारी अश्वारोही मूर्ति के साथ नाग देवता की मूर्ति भी होती है। इन देवरो में साँप के काटने पर जहर चूस कर निकाला जाता है तथा तेजाजी की तांत बाँधी जाती है। तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है। तेजाजी का जन्म धौलिया गौत्र के जाट परिवार में हुआ। धैालिया शासकों की वंशावली इस प्रकार है:- 1.महारावल 2.भौमसेन 3.पीलपंजर 4.सारंगदेव 5.शक्तिपाल 6.रायपाल 7.धवलपाल 8.नयनपाल 9.घर्षणपाल 10.तक्कपाल 11.मूलसेन 12.रतनसेन 13.शुण्डल 14.कुण्डल 15.पिप्पल 16.उदयराज 17.नरपाल 18.कामराज 19.बोहितराव 20.ताहड़देव 21.तेजाजी
तेजाजी के बुजुर्ग उदयराज ने खड़नाल पर कब्जा कर अपनी राजधानी बनाया। खड़नाल परगने में 24 गांव थे। तेजाजी का जन्म खड़नाल के धौल्या गौत्र के जाट कुलपति ताहड़देव के घर में चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ सत्रह सौ तीस को हुआ। तेजाजी के जन्म के बारे में मत है-
जाट वीर धौलिया वंश गांव खरनाल के मांय।
आज दिन सुभस भंसे बस्ती फूलां छाय।।
शुभ दिन चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ पहचान।
सहस्र एक सौ तीस में प्रकटे अवतारी ज्ञान।।

Thursday, 8 February 2018

जातिवादी रैलियों से समाज को खतरा :- नवरत्न मंडुसिया


आये दिन हो रही जातीवादी रैलियों का विरोध करता हु दोस्तों आजाद भारत मे आजादी से रहना है दुनिया का सबसे बड़ा प्रेम भाव और आपसी एकता होगी यदि आये दिन हम जातिवादी रैलिया करेंगे तो आने वाले दिनों में हर तरफ नफरत पैदा हो जायेगी और आपसी मतभेदों में फूट पड़ जायेगी। और इसका फायदा केवल पड़ोसी मुल्को को होगी दुनिया मे रहना है तो केवल भाईचारे से ही रहना होगा नही तो हमारे समाज मे इतनी नफरत फेल जाएगी कि कोई भी समाज एक दूसरे समाज पर विश्वास नही करेगा यदि हम लोग ये जातिवादी रैलियों निकाल कर हम आने वाली पीढ़ियों को भी जुर्म के रास्ते पर ला रहे है क्यो की हम अपराध करेंगे तो आनी वाली पीढ़ी भी अपराध करेगी इसलिए अभी भी हर समाज के पास मौका है कि जातिवादी रैलियों को समाप्त कर भाईचारे की ओर बढ़े और समाज का कल्याण कर सके में नवरत्न मंडुसिया जातिवादी रैलियों की घोर निंदा करता हु विरोध करता हु क्यो की मेरे हिसाब से दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है तो वो है केवल भाईचारा इसलिए हमें जातिवादी रैलियों को समाप्त करके आपसी प्रेमभाव को आगे लाये ताकि समाज टूटने की बजाय समाज आगे बढ़ सके में हर समाज के युवाओ को कहना चाहता हु हमे सयम रखते हुवे आपसी प्रेम भाव से रहे हो जातिवादी रैलियों को बहिष्कृत करे  मेरा मानना है मेरा  सोचना है कि ऐसी रैलियों में दूसरी जातियों के खिलाफ नफरत फैलायी जाती है। जिससे समाज में टूटन पैदा होती है। नवरत्न मंडुसिया का मानना है कि  हमे केवल भाईचारे की भांति ही रहना चाहिए और इस हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आदि का नाम भूलकर केवल भाईचारे में ही विश्वास रखना चाहिये ! इसमे कोई दो राय नहीं कि जाति के बिना भारतीय राजनीति और समाज दोनों की ही कल्पना नहीं की जा सकती। चुनावों में जातियों के आधार पर उम्मीदवारों का चयन होता है। चुनाव जीतने के लिये जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर रणनीति बनायी जाती है। एक जाति का वोट लेने के लेने के दूसरी जातियों के खिलाफ नफरत का बीज बोया जाता है। राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर जाति विशेष के नेताओं को आगे बढ़ाया जाता है। इसलिये मेरा  फैसला क्रांतिकारी लग सकता है। खासतौर से आज के परिपेक्ष्य में जब कि भारत में एक नया शहरी मध्यवर्ग खड़ा हो रहा है और देश में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया जोर पकड़ रही है। पर लोग ये भूल जाते हैं कि जाति इस देश की सचाई है। इस जातिवाद की वजह से ही कभी बराबरी नहीं रही। भारत आदिकाल से 'गैरबराबरी समाज' रहा है। जहां किसी भी शख्स की समाज में हैसियत उसकी जाति से ही आंकी और तय की जाती रही है।  बावजूद उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता है। उनको व्याहारिक जीवन में हेय दृष्टि से ही देखा जाता है। हालांकि अब इसमें कमी आ रही है लेकिन संवैधानिक बराबरी आज भी अधूरी है। शुरुआत में तो पिछड़ी जातियों को सत्ता में भागीदारी के नाम पर उनका सिर्फ शोषण किया गया। उनको सजावट की वस्तु बना दिया गया। आजादी के पहले और बाद में दलितों के लिये बाबा साहेब आंबेडकर ने लड़ाई लड़ी। आंबेडकर ने रिपब्लिकन पार्टी बनायी। पर दलित चेतना में निर्णायक उभार नहीं पैदा कर पाये और हारकर बौद्ध धर्म अपनाना पड़ा। मेरा मानना साफ है कि सामाजिक स्तर पर जातिवाद भले ही किसी अभिशाप से कम न हो लेकिन 'राजनीतिक-जातिवाद' ने समाज में बराबरी लाने का ऐतिहासिक काम किया है। बिना उसके पिछड़ी जातियों को न तो सत्ता में भागीदारी मिलती और न ही सत्ता में आने की वजह से मिलता सामाजिक सम्मान। इसलिये अदालत का फैसला अपनी जगह, सामाजिक सचाई अपनी जगह। इसलिये हमे हमे जातिवादी रैलियों को बहिष्कृत करके एक सभ्य समाज मे नई क्रांति लाना है
                                                                                                         नवरत्न मंडुसिया (लेखक )

Tuesday, 23 January 2018

क्योकि सोचना जरूरी है कि हम जा कंहा रहे है:- बल्लू राम मावलिया अभयपुरा

युवा कवि युवा लेखक समाज सेवी जाट समाज के लाडले बल्लू राम मावलिया अभयपुरा की कलम से
मंडुसिया न्यूज़ ब्लॉग ज्ञान कि परिभाषा बदल गई है, लोगों कि सोचने और समझने कि क्षमता मे काफी गिरावट हो रही हैं ।हम सफल हो रहे हैं, अपने विचार और आदर्श को खो कर, अपने आप को बेचकर खूब उन्नति कर रहे हैं । कुछ खो रहे हैं,  महसूस भी हो रहा हैं, मगर इतना वक्त नही है थोड़ा ठहर कर सोचने का। एक अंधी दौर जीवन मे चल रहा है, जिसका मकसद और मंजिल कुछ नही हैं। मंजिल है तो सिर्फ धन और दौलत । विवेकशीलता मानव के अन्दर से खो गया है। हम लोग अपना-अपना विवेक खो कर भी विवेकानन्द कि बात करते है जिन्होंने अपने विवेक से दुनिया को आनन्दित किया था।आज हम लोगों की कथनी और करनी मे इतना फर्क हो गया है कि हर बात, हर सोच, हर विकास इत्यादि को पैसे कि तराजू पर तौलते हैं, माना कि मानव का जीवन पैसे के बिना नही चल सकता है, मगर पैसा साधन हो सकता है, साध्य नही हो सकता है। जितने भी सफल व्यक्ति हैं उनके जीवन मे जितनी व्यक्तिगत घुटन और समस्या है उतनी समस्या एक साधारण व्यक्ति के जीवन मे नही है। मैं व्यक्तिगत तौर पर महसूस करता हूँ कि एक आम आदमी दुनिया कि निगाहों मे जो व्यक्ति सफल है  उससे अधिक सफल होता है। विकास एक नजरिया हैं, सफलता और असफलता का कोई निश्चित पैमाना नही होता है। असली मे जो अपना परिवार चला सकता हैं, अच्छे और बुरे मे फर्क कर सकता है, अपने से जुड़े लोगों का आदर और सम्मान कर सकता है, ओर करवा सकता है। वही ज्ञानी और सफल मानव है।
Save the family and save the nature
बल्लूराम मावलिया अभयपुरा

Wednesday, 13 December 2017

खाटूश्यामजी मे होगा 25 दिसम्बर को बलाई समाज का सामूहिक विवाह सम्मेलन

बेटा अंश है तो बेटी वंश है, बेटा आन है तो बेटी शान है, का संदेश देते हुए राज्य स्तरीय सामूहिक विवाह व पुर्नविवाह सम्मेलन 25 दिसम्बर  को आयोजित किया जाएगा।बलाई समाज के पंचम सामूहिक विवाह समेलन जो कि 25 दिसम्बर को खाटु श्याम जी में होने जा रहा हे।जिसमे लगभग 101 जोड़े वैवाहिक बंधन में बंधने जा रहे हे 71 का रजिस्ट्रेशन हो चूका हे। में आप सभी से इसे सफल बनाने की प्रार्थना करता हूँ।आप लोग ज्यादा से ज्यादा संख्या में उपस्तित होकर नव् दंपतियों को आशीर्वाद प्रदान करे व अपना अमूल्य सहयोग प्रदान करके इस विवाह समेलन को सफल बनायें। लगभग 50 हजार की संख्या में समाज व् अन्य लोगो के शिरकत करने की उमीद हे। बहुत सारी व्यवस्थाये करने ह जो आपके  सहयोग के बिना संभव नहीं है। अतः आप अपने तन मन व् धन से इसे सफल बनायें। बहुत सारे कार्यकर्ताओ की आवश्यकता है तथा बारात व कलश यात्रा निकाली जाएगी। जहां आयोजन स्थल पर बारातियों का स्वागत किया जाएगा। इस मौके पर वर-वधुओं का पणिग्रहण संस्कार कराने के साथ ही समाज की भामाशाहों, मुख्य अतिथियों व प्रतिभाओं का सम्मान किया जाएगा।  बलाई समाज सहित बड़ी संख्या में प्रतिष्ठित व गणमान्य लोग व समाजबंधु कार्यक्रम में शिकरत करेंगे।
खास रिपोर्ट नवरत्न मंडुसिया
सुरेरा

Monday, 4 September 2017

सुरेरा के युवा पत्रकार अर्जुन राम मुंडोंतिया

नवरत्न मन्डुसिया की कलम से /ग्रामीण अंचल मे जन्मे युवा पत्रकार अर्जुन राम मुंडोंतिया
जो की हर ख़बर को बड़ी शालीनता से प्रकाशित करते है
इस पत्रकार की जितनी तारीफ करे उतनी ही कम है
इस युवा की उम्र मात्र 20 साल है और इतनी कम उम्र मे इतनी बड़ी  उपलब्धि पाना बड़ी मुश्किल है  हमे आशा भी है की अर्जुन राम भविष्य मे भी एक ईमानदार पत्रकार बनके रहेंगे
आइये जानते कौन है अर्जुन राम मुंडोंतिया 
अर्जुन राम राजस्थान प्रांत के सीकर जिले के दाँतारामगढ़ तहसील के सुरेरा गाँव के है
अर्जुन राम रवीदासी समुदाय से है  और अर्जुन राम मुंडोंतीया ने प्रारम्भीक शिक्षा गाँव के सरकारी विद्यालय से की बाद मे रामगढ़ के सरकारी विद्यालय से 12 वी पास की और दिनप्रतिदिन अपना पत्रकारिता मे मन लगा तो यह अपने पिता के मार्गदर्शन से सुरेरा गाँव भारीजा गाँव मन्ढा गाँवों की सकारात्मक रिपोर्टिंग करने लग गया और गाँवों मे युवा पत्रकार के रुप मे उभरने लग गया अब अपने दम पर अच्छी रिपोर्टिंग कर लेते है अर्जुन राम 12 वी पास करने के बाद बी. ए की पढ़ाई की और साथ साथ मे आईटीआई विधुत्कार से की अब पढ़ाई के साथ साथ अच्छी रिपोर्टिंग भी करते है और घर के काम मे भी अपना महत्वपूर्ण योगदान देते है यह युवा विवेकानंद और बाबा साहेब डॉक्टर भिव राव अम्बेडकर के आदर्शों पर चलने के लिये एक दूसरे लोगो को प्रेरित करते है और बाबा साहेब को अपना आदर्श मानते है:- नवरत्न मन्डुसिया की कलम से
अर्जुन राम मुंडोंतिया 

Wednesday, 16 August 2017

क्योंकि संघर्ष ही जीवन है :- बल्लू राम मावलिया अभयपुरा

MOTIVATIONAL/प्रेरणादायक


प्रिय साथियों...
जीवन संघर्ष का ही दूसरा नाम है । इस सृष्टि में छोटे-से-छोटे प्राणी से लेकर बड़े-से-बड़े प्राणी तक, सभी किसी-न-किसी रूप में संघर्षरत हैं । जिसने संघर्ष करना छोड़ दिया, वह मृतप्राय हो गया । जीवन में संघर्ष है प्रकृति के साथ, स्वयं के साथ, परिस्थितियों के साथ । तरह-तरह के संघर्षों का सामना आए दिन हम सबको करना पड़ता है और इनसे जूझना होता है । जो इन संघर्षों का सामना करने से कतराते हैं, वे जीवन से भी हार जाते हैं, जीवन भी उनका साथ नहीं देता ।
सफलता व कामयाबी  की चाहत तो सभी करते हैं, लेकिन उस सफलता को पाने के लिए किए जाने वाले संघर्षों से कतराते हैं । मिलने वाली सफलता सबको आकर्षित भी करती है, लेकिन उस सफलता की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले संघर्ष को कोई नहीं देखता, न ही उसकी ओर आकर्षित होता है, जबकि सफलता तक पहुँचने की वास्तविक कड़ी वह संघर्ष ही है । हम जिन व्यक्तियों को सफलता की ऊँचाइयों पर देखते हैं, उनका भूतकाल अगर हम देखेंगे तो हमें जानने को मिलेगा की यह सफलता जीवन के साथ बहुत संघर्ष से प्राप्त हुई है ।
वास्तव में जब व्यक्ति अपने संघर्षों से दोस्ती कर लेता है, प्रसन्नता के साथ उन्हें अपनाता है, उत्साह के साथ चलता है तो संघर्ष का सफर उसका साथ देता है और उसे कठिन-से-कठिन डगर को पार करने में मदद करता है । लेकिन यदि व्यक्ति जबरन इसे अपनाता है, बेरुखी के साथ इस मार्ग पर आगे बढ़ता है, तो वह भी ज्यादा दूर तक नहीं चल पाता, बड़ी कठिनाई के साथ ही वह थोड़ा-बहुत आगे बढ़ पाता है । जब जीवन में एवरेस्ट जैसी मंजिल हो और उस तक पहुँचने के लिए कठिन संघर्षों का रास्ता हो, तो घबराने से बात नहीं बनती, संघर्षों को अपनाने से ही मंजिल मिल पाती है ।
जब हम संघर्ष करते हैं, तभी हमें अपने बल व सामर्थ्य का पता चलता है । संघर्ष करने से ही आगे बढ़ने का हौसला, आत्मविश्वास मिलता है और अंततः हम अपनी मंजिल को हासिल कर लेते हैं ।
वास्तव में हमारे जीवन में भी संघर्ष  ही वह चीज है, जिसकी हमें सचमुच आवश्यकता होती है । यही हमें निखारता है और हर पल अधिक शक्तिशाली, अनुभवी बनाता है । यदि हमें भी बिना किसी संघर्ष के ही सब कुछ मिलने लगे तो न तो हम उसकी कीमत समझेंगे और न ही हम विकसित हो पाएँगे, बल्कि अपंग ही रह जाएँगे...।

बल्लूराम मावलिया अभयपुरा की कलम से 

सुरेरा में ईद का त्यौहार मनाया गया

सुरेरा में ईद त्यौहार पर युवाओं में उत्साह सुरेरा: ||नवरत्न मंडूसीया की कलम से|| राजस्थान शांति और सौहार्द और प्यार और प्रेम और सामाजिक समरस...