Thursday, 5 April 2018

सामाजिक समरसता की शुरुवात सबसे पहले अपने घर से करनी चाहिये :- नवरत्न मंडुसिया


“सामाजिक समरसता” विषय पर  में नवरत्न मंडुसिया आपको सामाजिक समरसता पर मेरे इंटरनेशनल ब्लॉग  पर देश के विकास के लिए सामाजिक एकता की आवश्यकता होती है और समाज में एकता की पूर्व शर्त है सामाजिक समता. जब समता आएगी तो सामाजिक एकता अपने आप आएगी. इसके लिए हमें प्रयत्न करना होगा.मेरे हिसाब से यदि देश मे आगे बढ़ना है तो हमे देश मे शांति बनाए रखना चाहिए और भाईचारे की भांति रहना चाहिए वर्तमान समय मे आपसी फूट का माहौल बन रहा है लोग एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए पता नही क्या क्या कर रहे है और आपसी फूट के कारण भारत देश मे मतभेद का माहौल बन रहा है दोस्तो दुनिया मे सबसे बड़ी शक्ति केवल है तो वो है भाईचारा  इसलिए हमें आपसी भाईचारा बनाये रखना चाहिए 2 अप्रेल को भारत देश लगभग जगह शांतिपूर्ण रहा है लेकिन कई जगह असामाजिक तत्वों की वजहों से माहौल भी खराब हुवा था तथा कई लोगो की मौते भी हुई थी लेकिन यह सब हमारी सब लोगो की वजह से हुवा है क्यो की हम लोग एक दूसरे की भावनाऐ समझ नही रहे है  इस लिए देश मे माहौल खराब हो रहा है यदि हम सब लोग एक दूसरे से प्रेम की भांति रहेंगे तो मानो बहुत जल्द ही भारत देश अग्रसर की ओर बढ़ जायेगा समाज मे सामाजिक समरसता के लिए समाज में जागरूकता लाने के लिए ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए. जिसमे हमारे समाज में विविधता है. स्वभाव, क्षमता और वैचारिक स्तर पर विविधता का होना स्वाभाविक भी है. भाषा, खान-पान, देवी-देवता, पंथ-सम्प्रदाय तथा जाति व्यवस्था में भी विविधता है. पर यह विविधता कभी हमारी आत्मीयता में बाधा उत्पन्न नहीं करती. विविध प्रकार के लोगों का समूह होने के बावजूद हम सब एक हैं. उन्होंने कहा कि समान व्यवहार, समता का व्यवहार होने से यह विविधता भी समाज का अलंकार बन जाती है. यदि हम लोग आपसी प्रेम से रहेंगे तो पड़ोसी देश मे भी हड़कम्प रहेगी इस लिए हमे आपसी प्रेम भाव रखना चाहिए तभी हम लोग आगे बढ़ पायेंगे हमारे देश में सभी विविधताओं में सबसे अधिक चर्चा जातिगत व्यवस्था की होती है. जातिभेद के कारण ही सामाजिक समस्याएं पैदा होती हैं और ये समस्याएं विषमता को जन्म देती हैं, जिसके कारण संघर्ष होता है. इसलिए समाज से जातिभेद को दूर करना होगा. सवाल किया कि इसका उपाय क्या है? उन्होंने जोर देकर कहा कि इसका एकमात्र उपाय है  समरसता के लिए जातिगत व्यवस्थाओं को सही दिशा में काम करना चाहिए. जब तक सामाजिक भेदभाव है, तब तक देश में आरक्षण जारी रहना चाहिए  समरसता की शुरुआत स्वयं से करनी होगी. “हजार भाषणों से ज्यादा असर एक कार्यकर्ता के व्यवहार का होता है.” इसलिए हमारा मन निर्मल हो, हमारा वचन दंशमुक्त हो, हमारे वचन से किसी को पीड़ा न हो. हम सबका व्यवहार सभी लोगों को अपना मित्र बनाने वाला होगा, तब समाज में समता का भाव विकसित होगा.यदि हम लोग आपसी प्रेम से रहेंगे तो धीरे धीरे सब समझने लगे जाएंगे और समाज का विकास शुरू हो जायेगा नवरत्न मंडुसिया ने कहा कि अपने परिवार में ऐसा वातावरण बनाएं, जिससे सामजिक समरसता को बल मिले. हमारे देश के सभी पंथ-संप्रदायों ने, तथा समाज सुधारकों और संतों ने मनुष्यों के बीच भेदभाव का समर्थन नहीं किया है. समानता प्रत्येक पंथ की उत्पत्ति का मूल तत्व रही है, लेकिन बाद में समाज को जातियों या संप्रदायों में विभाजित कर दिया गया. भेदभाव लोगों के व्यवहार से भी पैदा होने लगा. उन्होंने भेदभाव खत्म करने की आवश्यकता पर जोर दिया और उन परंपराओं को खारिज किया जो अनावश्यक हैं. उन्होंने कहा कि परम्परा के नाम पर इस भेदभाव को आगे और जारी रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती. उन लोगों की भावनाओं को समझा जाना चाहिए जो हजारों वर्षों से पीड़ित रहे हैं. समाज के कई तबकों ने भेदभाव और अन्याय को लंबे समय तक सहा है. कि अब हमें भी कुछ वर्षों तक समझना और सहन करना सीखना चाहिए और अपने स्वयं के व्यवहार से वांछित बदलाव लाना चाहिए. रूढ़ी-परम्पराओं को आधुनिक वैज्ञानिक मानकों पर परखा जाना चाहिए और जो परीक्षण में विफल साबित हों, उन्हें खारिज कर दिया जाना चाहिए. दुर्भाग्य से ये रूढ़ी-परम्पराएं हजारों वर्षों से नहीं परखी गईं और इनका आंख मूंदकर पालन किया जा रहा है. परंपरागत कर्मकांड तो चलते आ रहा है, किन्तु जीवन मूल्यों की अनदेखी की गई. अपने व्यवहार में जब तक ये मूल्य प्रकट नहीं होंगे, तब तक समता का दर्शन समाज में नहीं हो सकता. हमें अपने जीवन में मूल्यों को मन, मस्तिष्क और व्यवहार में आचरणीय बनाना होगा. संबोधन के दौरान नवरत्न मंडुसिया ने स्वामी विवेकानन्द, रानी लक्ष्मी बाई झरकारी बाई व  डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर, पू. बालासाहेब देवरस तथा पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों का उल्लेख किया.ओर कहा है कि हमे इनके विचारों पर चलना चाहिए तभी समाज का विकास हो सकता है आये दिन हो रही जातिवादी रैलिया भी समाज के लिए आतंकवाद से भी सबसे बड़ा खतरा है इसलिए हमें जातिवादी रैलियों में पर भी ध्यान देना चाहिए कि हमे रैली करनी है या नही समाज की खातिर जो लोग आगे बढ़ रहे ह हमे उसे आगे बढ़ने के मनोबल बढ़ाना चाहिए :- नवरत्न मंडुसिया सुरेरा 

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