नवरत्न मंडुसिया!!में नवरत्न मंडुसिया आज एक शिक्षक प्रदीप डोगीवाल पुत्र श्री बलदेवा राम डोगीवाल के बारे में इनकी कहानी बताने जा रहा हु प्रदीप डोगीवाल एक टीचर के साथ साथ एंकर से भी कम नही है प्रदीप डोगीवाल ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गाँव से की है प्रदीप डोगीवाल सीकर जिले के धोद तहसील के काशी का बास में जन्मे है डोगीवाल एक शिक्षक के साथ साथ सामाजिक सेवा में भी अव्वल रहते है आइये जानते है प्रदीप डोगीवाल के बारे में दोस्तो में नवरत्न मंडुसिया एक सामाजिक ब्लॉग चलता हूं और ब्लॉग का नाम है सामाजिक समरसता इस ब्लॉग का उद्देश्य सामाजिक समरसता लाना है जिंदगी के 23 वर्ष कैसे बीत गए, बड़ा अजीब लगता है। यूं महसूस होता है कि अरे ये अभी-अभी ही गुजरे है लेकिन मेहनत और लगन ने आज प्रदीप डोगीवाल को प्रथम प्रयास में ही पाली में शिक्षक के पद पर नियुक्ति दी है यह युवा अपनी शिक्षा प्रणाली में अच्छा योगदान तो देते भी है साथ साथ मे बच्चों को मोटिवेट भी करते रहते है जब में नवरत्न मंडुसिया पहली बार सन 2013 में सीकर के एक शिक्षक बीएड कॉलेज और बीएसटीसी कॉलेज के विद्या भारती कॉलेज में मिला तो मुझे मिलकर अच्छा लगा इनकी हर एक बातो से वाकिब हुवा हमेशा हर सांस्कृतिक कार्यक्रम में आगे रहते थे और अव्वल भी रहते थे मुझे मिलकर अच्छा लगा प्रदीप डोगीवाल की शिक्षा बीए ओर बीएसटीसी है प्रदीप डोगीवाल का एक भाई सुरेश डोगीवाल भी है वह भी अभी पढ़ाई कर रहा है माता भवरी देवी के आदर्शो पर चलते है पिता से हमेशा मोटिवेशनल होने के लिए आगे बढ़ते रहे रहते है वाकई ये बरस फूलों की खुशबू पर सवार थे। भीनी-भीनी और हौले-हौले चलती हवाओं में खुशबू और वक्त रंग-बिरंगी तितली बन गया था। उसके परों पर ये बरस केसर की क्यारियों में धुलते रहे। ये बरस न बोझ बने न चट्टान की तरह काटने पड़े, मुस्कुराहटों, लोरियों, अपनेपन के मोरपंख से रास्ता बनाते रहे। हालांकि प्रदीप डोगीवाल का शिक्षक बनाना इतना आसान नहीं था लेकिन ये वक्त के कठोर मेहनत कठोर परिश्रम और चट्टानी चुनौतियों पर उगी हुई हरी घास थी। ये घास आश्वस्त करती थी कि अभी संभावनाओं के फूल, उम्मीदों की तितलियां, होठों पर मुस्कुराहट के अंकुर फूटेंगे बे आवाज और रातरानी की तरह अंधेरे में खुशबुओं के उजास बिखरेंगे और दिन की तमाम तपीश और त्रासदियां तिरोहित होकर रातरानी की गंध में समा जाती थीं। जिंदगी बड़ी अजीब है। कठोर भी और बच्चे की मुस्कुराहट और किलकारी भी। प्रदीप डोगीवाल शिक्षक बनकर बच्चों के बीच आ गया था। पहली ही बार उन जोधपुरी रास्तों के कठोर घुमाओं से गुजरते हुए लू-लपट के बीच जीर्ण-सी इमारत के परिसर में आ गया था। प्रदीप डोगीवाल को आश्चर्य हुआ था कि मुझे जरा-सा भी परायापन, अनजानापन, अपरिचय महसूस ही नहीं हुआ था। इमारत में उसके पटाव में, उजालदानों में कबूतर गुटूर गूं कर रहे थे। फटी टाटपट्टियों पर बच्चे बैठे पट्टियों पर लिख रहे थे। उस दिन मुझे ऐसा क्यूं लगा था कि मैं यहीं से कहीं गया था और फिर अपनों के बीच लौटा हूं। शायद यही अपनापन मेरे अंतस से उमड़-घुमड़कर बाहर आ गया था, मैं उन्हीं गुटूर गूं और किलकारियों में समा गया था। एक शिक्षक की जिंदगी का यह पहला दिन था जो पगडंडी बनकर सरपट भागने लगा था। एक अल्हड़ बालक की तरह... मैं उन्हीं का हिस्सा हो गया था। प्रदीप डोगीवाल ने वर्तमान में खेल ग्राउंड सरपंच से पास करवाया है तथा साथ मे दो लाख का बजट भी पास करवाया है इतनी कम उम्र में बड़ी सोच रखने वाले युवा कम ही मिलेंगे ऐसे शिक्षकों को आगे बढ़ना चाहिए और देशभक्ति देश हित मे अच्छा योगदाना देना चाहिये एक अध्यापक बच्चों को क्या दे सकता है? क्या आश्वासन दे सकता है? एक खूबसूरत दुनिया का सपना दे सकता है। आंखों के फैले बियाबान में दूर कहीं टिमटिमाती रोशनी का ख्वाब दे सकता है। ओर अच्छी शिक्षा के अलावा देने को उसके पास क्या है। लेकिन अच्छी शिक्षा के साथ साथ विद्यार्थियों को आगे बढ़ने के लिए उनको शिक्षा दे सकता है कठोर दुनिया से टकराकर चूर-चूर होती उम्मीदें, तिड़कते-बिखरते सपनों को निरंतर जोड़ते हुए बच्चों की उम्मीदों को थपकियां दे सकता है। हर बार बच्चों के टूटते सपनों को एक आशा की डोर से बांधकर दूर गगन में उड़ाता है। अभी डोगीवाल सरकारी सेवा में केवल कुछ ही दिन हुवे है लेकिन फिर भी बच्चों की किलकारियों में रहा, मासूम और भोलेपन की दुनिया में रहा। उनकी निर्दोष आंखों की चमक में रहा, कभी उनके उदास और आंसुओं से भरी पलकों में रहा। वे होठ जब मुस्कुराते थे तो लगता था तपते रेगिस्तान में ठंडी हवा का झोंका आ रहा है। वे कुछ कहते थे मैं सुनता था, उन अबोध शब्दों में कितना अपनापन, कितनी बड़ी दुनिया समाई होती थी। किताबों के पाठ और कविताएं, अक्षर-अक्षर, शब्द-शब्द शहद के मानिंद हो उठते थे। वाकई वह कक्षा सिर्फ कक्षा नहीं होती थी। वह मुस्कुराहट और उमंग से भरी डलिया होती थी, जो किसी उत्सव की तैयारी का पता देती थी। और आज चालीस बरस लंबी किलकारियों, हंसते-खेलते, मुस्कुराते बच्चों की दुनिया से जा रहा हूं। कितना सूना और सन्नाटा-सा मैं अपने चारों तरफ पा रहा हूं। हमेशा खुद स्वार्थ नही देखते है डोगीवाल हमेशा देश का भविष्य देखते है ज्यादातर डोगीवाल बच्चों की शिक्षा पर जोर देते है डोगीवाल आपसी प्रेमभाव भाईचारे में विश्वास रखते है जातिवाद के खिलाफ है कभी किसी को ऊँचा नीचा नही समझा सभी का एक खून है इसी पर मनन करते है और सब एक ह इस पर विश्वास करते है प्रदीप डोगीवाल अपनी पत्नी अनिता डोगीवाल को भी मोटिवेशनल लिंक मानते है अनिता डोगीवाल अभी वर्तमान में पढ़ाई के साथ साथ सास ससुर ओर परिवार जनों को भी संभालती है उन शिक्षकों, शिक्षिकाओं के द्वारा दिए गए मान-सम्मान को उससे ज्यादा अपनेपन को महसूसता हूं अपना समझा जैसे रिश्तों की डोर से बंधे रहे, एक पारिवारिक वातावरण में सामाजिक जवाबदारियों में रहे:- नवरत्न मंडुसिया
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