Sunday 25 June 2017

साहू जी महाराज

 चरित्र उन्नायक समग्र सामाजिक क्रांति के अग्रदूत साहू जी महाराज कोल्हापुर रियासत के शासक माननीय अप्पा साहिब घाटके के पुत्र थे। उनका जन्म 26 जून 1874 को कुर्मी परिवार में हुआ था। माता का नाम राधाबाई था। बचपन से मेधावी, कुशाग्र बुद्धि के शांतिप्रिय तथा दयावान थे। बचपन में वे यशवंत राय के नाम से जाने जाते थे। बालक यशवंत राय को 12 वर्ष की अल्पायु में ही राजपाट की जिम्मेदारी सौंप दी गई। अब वे साहूजी महाराज कहलाने लगे। जब उन्होंने राज्य की सत्ता की बागडौर संभाली उस समय चारो ओर ब्राम्हणों का वर्चस्व था। उनके राज्य में एक सौ मंत्री ब्राम्हण थे। साहू जी महाराज ने अपने राज्य में ब्राम्हणो का प्रभुत्व कम किया और बहुजन जातियो को प्रतिनिधित्व दिया। छत्रपति शाहूजी महाराज जी जिस समय गद्दी पर बैठे, उस समाज समाज के दशा कई दृष्टियों से सोचनीय थी l जाति-पात, ऊँच-नीच, छुआ-छूत, मानवाधिकारों की असमानता, निर्धन कृषकों और मजदूरों की दीन-हीन स्थिति, पाखंडवाद भरी धर्म पद्धति, वर्ण-व्यवस्था को घोर तांडव असहाय जनता को उबरने नहीं दे रहा था l वर्ण-व्यवस्था में चौथा वर्ण जो आता है यानि कि शूद्र जिसका कोई अपना अस्तित्व नहीं था, उसकी दशा दायनीय थी l उस समय वर्ण-व्यवस्था और ऊँच-नीच के भेदभाव को मिटाने के लिए "सत्य शोधक समाज" लगातार कार्य कर रहा था जिसकी स्थापना महात्मा ज्योतिबाफुले जी ने की थी l
महाराष्ट्र में उस समय ब्राह्मणों की संख्या 5 प्रतिशत थी लेकिन फिर भी वे ब्रिटिश शासन में हर स्थान पर नियुक्त थे l राजनीति, सरकारी नौकरियां, धर्मदण्ड सभी कुछ उनके हाथ में था l ऐसी विषम स्थिति में अबोध और गरीब जनता का जीवन नारकीय हो गया था l ब्राह्मण शिक्षा पर अपना एकाधिकार बनाये हुए थे वे गैर-ब्राह्मणों को शिक्षा पाने पर प्रतिबन्ध लगाये हुए थे l वेदों का अध्ययन ब्राह्मणों के अतिरिक्त कोई जाति नहीं कर सकती थी l
छत्रपति शाहूजी महाराज जी को महात्मा ज्योतिबाफुले जी के संघर्षों से प्रेरणा मिल रही थी और उनके पथ पर चलने को आतुर थे l इस दिशा में छत्रपति शाहूजी जी महाराज को सावधानी और बुद्धिमानी से काम लेना था l इसके लिए सबसे पहले आवश्यकता थी कि जनमत तैयार किया जाए तथा जनता में भाव उदय किया जाय कि वह स्वयं नाना प्रकार की कुरीतियों एवं बुराइयों को दूर करने के लिए सक्रिय और सचेत हो जाए l
वह समय आ गया जब छत्रपति शाहूजी जी महाराज ने अपना शासन दृढ़तापूर्वक प्रारम्भ कर दिया l वे आस-पास के गाँव में जाते, सभी किसानों और मजदूरों से खुलकर मिलते और उनकी समस्याओं को सुनते और उनकी समस्या का निदान करते l कभी-कभी अपना राजकीय भोज गरीबों के सड़े-गले खाने में बदल देते l डॉक्टरों के मना करने पर भी वे गरीबों का बासी, कच्चा और रखा हुआ भोजन खा लेते थे l वे राजा होकर भी मानवीय संवेदनशीलता से सम्पन्न थे l
छत्रपति शाहूजी महाराज जी की धारणा थी कि शासन में सभी वर्गों व जातियों के लोगों की साझेदारी शासन को संतुलित और चुस्त बनाएगी l किसी एक जाति के लोगों का शासन प्रजा की वास्तविक भावना और आकांक्षा का प्रतिनिधित्व नहीं करता l उन्होंने ऐसा ही किया l सर्वप्रथम उन्होंने अपने दरबार से ब्राह्मणों को वर्चस्व कम किया और सभी वर्गों की भागीदारी निश्चित की l निर्बल वर्गों के लोगों को उन्होंने नौकरियों पर ही नहीं रखा बल्कि वे उनकों साथ लेकर चलने भी लगे l इससे ब्राह्मणों में रोष उत्पन्न हो गया और वो लोगों में भ्रम फैलाने लगे कि छत्रपति शाहूजी महाराज अनुभवहीन है तथा वे अक्षम लोगों को सरकारी पदों पर नियुक्त कर रहे है l छत्रपति शाहूजी महाराज जी अपनी विचारधारा पर अटल थे और उन पर ब्राह्मणों के इस रवैये का कोई फर्क नहीं पड़ा l
छत्रपति शाहूजी महाराज जी ने अनुभव किया कि अछूत वर्ग तथा पिछड़े वर्ग के लोग प्रायः अशिक्षित और निर्धन है l वे आर्थिक दरिद्रता और सामाजिक अपमान को एक लम्बी परम्परा से भोग रहे है l छत्रपति शाहूजी जी महाराज जी की इच्छा थी कि शिक्षा का प्रसार छोटी जातियों एवं वर्गों के बीच किया जाए जिससे उनकों अपने अधिकारों का सही ज्ञान हो सके l इसके लिए उन्होंने स्वयं की देख-रेख में स्कूलों की स्थापना करवाई और शिक्षा के द्वार सभी के लिए खोल दिए l अपने राज्य में स्कूली छात्रो को निशुल्क शिक्षा की पुस्तके एवम् भोजन की व्यवस्था की।
नैतिक और भौतिक विकास से छत्रपति शाहूजी महाराज जी का एक ही प्रयोजन और एक ही मतलब था और वह था निर्बल दलितों तथा शोषितों की शिक्षा, स्वास्थ्य तथा कृषि सम्बन्धी विकास l उनकी प्रबल आकांक्षा थी कि उस तथाकथित शूद्र और अतिशूद्र जातियों को शासन व्यवसाय तथा स्थानीय निकाय में अधिक से अधिक हिस्सा मिले l जिसके लिए जरुरी था कि पहले उनको शिक्षित किया जाए l उन्होंने अपने राज्य में इन्हें आरक्षण की व्यवस्था की तथा अधिकार दिया तथा
बाबा साहेब डा० भीमराव अम्बेडकर जी बड़ौदा नरेश की छात्रवृति पर पढ़ने के लिए विदेश गए लेकिन छात्रवृति बीच में ही ख़त्म हो जाने के कारण उन्होंने वापस भारत आना पड़ा l तब छत्रपति शाहू जी महाराज ने बाबा साहेब को विदेश में आगे की पढाई जारी रखने के लिए पैसे दिए और उनको आगे बढ़ाने का भरपूर प्रयास किया l छत्रपति शाहू जी महाराज जी डा० अम्बेडकर जी से बहुत ही प्रभावित थे उनको जैसे ज्ञात हो गया था कि बहुजन समाज का उद्धार करने के लिए डा० अम्बेडकर का जन्म हुआ है l
अपने राज्य में उन्होंने दुकाने खुलवाई तालाब खुदवाये कुए खुदवाये सस्ता अनाज उपलब्ध करवाया आदि महत्वपूर्ण कार्य किये।
सती प्रथा एवम् विधवा विवाह के लिए राजाराम मोहन राय को जाना जाता है, किन्तु वास्तव में साहूजी ने ही विधवा स्त्रियों के लिए पुनर्विवाह रजिस्ट्रेसन कानून बनाकर देश में राष्ट्रिय एकता, धर्म निरपेक्षता कायम की और मनुवादियों के किले ध्वंश कर डाले। साहूजी ने 1920 में हिन्दू संहिता बनाकर राज्य में कानून लागू किया, इसी आधार पर ही बाबा साहेब ने हिन्दू कोड बिल की स्थापना की थी। कोल्हापुर राज्य और बहुजन समाज के लिए यह अत्यंत दुखद पल ही था कि छत्रपति शाहूजी महाराज जी निरंतर स्वास्थ्य ख़राब होने के कारण मात्र 48 वर्ष की आयु में 6 मई 1922 को लगभग 6 बजे वह इस संसार को विदा कह दिया।
इंसान दो प्रकार के होते है एक तो वे जो अपने परिवार के भरण-पोषण तक ही सीमित रहते है दूसरे वे जो अपने परिवार के साथ-साथ दूसरे परिवार को भरण-पोषण करने में अपना जीवन व्यतीत कर देते है l अपना जीवन संकट में डाल कर दीन-दुखियों की मदद करते है, खुद हानि सहकर दूसरों को लाभ पहुंचाते है l ऐसे ही लोग दुनिया में अमर हो जाते है और हमेशा याद किये जाते है
छत्रपति शाहूजी महाराज को शत शत नमन ।

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